Thursday, October 12, 2023

Bhagvad Gita in Brief

 https://www.blogger.com/blog/post/edit/3729731558147000441/2044075230376321986

Wednesday, June 21, 2023

India valued the most important: Highest Point in my Career in Foreign Service:

 While covering the visit of the Indian delegation led by Prime Minister Modi to USA right from Washington, I feel the most proud of having served India as IFS officer.  India today has gained the highest place in the family of nations. With Modi leading India 's policies, we are recognised  as  an apostle of peace throughout the world.  India is valued equally important for most of the countries in the world, be it USA, Russia, Ukraine, Australia, Gulf countries or Pacific Islands.  Today we are not only leading in the Yoga skills, but also attracting  manufacturers of leading companies of the world's most powerful countries. 





Monday, March 13, 2023

Karmyog, gyanyog, bhaktiyog k mahatwa

  मनुक्खक जीवनमे कर्म योग, ज्ञान योग एवं भक्ति योगक महत्व
                        
भगवत् गीतामे भगवान श्रीकृष्ण सर्वप्रथम कर्म योग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग के विषय मे प्रकाश देने छथिन्ह।अर्जुन पृथ्वी परक सभ मनुक्ख जकाॅं मोह, माया मे उलझिकॅं किंकर्त्तव्यविमूढ़ भेल, कर्तव्य सॅं विमुख भ' क' भगवानक शरण मे छथि। भगवान ओकरा आत्मा परमात्मा के अर्थ, भेद एवं योग के विषय बुझबैत कर्म योग, ज्ञान योग एवं भक्ति योग के मार्गसॅं पृथ्वी पर सतत् पतनशील धर्म व्यवस्थाकेॅं पुनः स्थापनाक लेल अन्याय के विरुद्ध युद्ध करय लेल तैयार करैत छथिन्ह। ई संदेश अर्जुन मात्र के लेल नहि बल्कि पूर्ण मनुक्ख समुदाय लेल छैक।
               मनुक्खक सभ कर्म इच्छा सॅं प्रेरित छैक, अर्थात फल प्राप्तिक इच्छासॅं। एहि तरहक कामनासॅं प्रेरित कार्यकेॅं सकाम कर्म कहल जाइत छैक। उदाहरण स्वरूप जीवन यापन के व्यवस्था केनाई, आवास, स्वास्थ्य आदि के व्यवस्था, यश, सन्तान प्राप्ति, धन प्राप्ति, ग्रह, व्याधि शान्ति आदि। वेद वा पुराणमे वर्णित विधिपूर्वक कएल जाय त' ओ सकाम कर्म कहल जाइत छैक, आ ओकर फल पूजित देवता, पितर दैत छथिन्ह।सकाम कर्म द्वारा मनुक्ख एहि जीवन के सुख सम्पदाकेॅं भोगिकऽ जीवन मृत्यु के नियमित चक्र के पार करैत अछि।जाहि मे जन्म , बिमारी, बुढापा, मृत्युकेॅं अवश्यंभावी कष्ट के कर्मानुसार भोगय परैत छैक। एहि चक्रकेॅं कर्मानुसार मृत्यु पश्चात स्वर्ग, नर्क व मृत्युलोक जाहिमे अनिश्चिते रुपसॅं पुनर्जन्म भोगय परैत छैक।
               मानव जीवनमे सफलताक बहुत महत्व छैक। सफल जीवनक कामना सभ करैत अछि। एहि लेल सभ लोक विशेष तैयारी, उचित सामग्री, समय, मेहनति लगाक' प्रयास करैत अछि। सफलता प्राप्तिक पश्चात अहंकारक बोध सेहो होइत छैक। एहन अवस्थामे लोक निष्काम कर्म के चर्चा केनाई, फलत्यागक विषयमे सोचनाई, कर्मफल त्याग व सन्यासक बारेमे जाननाई अनर्गल बुझैत छैक।आ ई लोकप्रिय विषय नहि अछि। तथापि निष्काम कर्म के ल' क' भगवान कृष्णकेॅं मानवक कल्याण हेतु मूलभूत उपदेश छनि -
" कर्मण्येवाधिकारस्ते,मा फलेषु कदाचन्
या कर्मफल हेतुर्भूर्मा ते संगोत्स्वकर्मणि"
Your right is to your work,never to the fruits. Be neither motivated by the fruits of your work, Nor be inclined to give up.
एहि श्लोकमे कर्मफलसॅं आसक्तिके त्यागक लेल उपदेश छैक।
               मनुक्ख कर्मसॅं कखनो विमुख नहि भऽ सकैत अछि। अकर्मण्य व्यक्ति अपन जीवन यापन सेहो नहि कऽ सकैत अछि। किओ अपना हाथ पैर या अन्य कर्मेंद्रिय के एको क्षण लेल रोकि क' नहि राखि सकैत अछि। शरीरक बनावटे एहि तरहक छैक। जीवन चक्र एहन छैक कि काज(कर्म) हेतैक त' कर्मफल निश्चिते हेतैक। ई कर्मफल तऽ कर्त्ता के भेटतैक। परन्तु एहि श्लोकमे कर्मफलकेॅं त्यागक अर्थ छैक जे मनुक्ख अपना कर्ता भावकेॅं त्यागि दैथ। कर्त्ता भावकेॅं त्याग मात्रसॅं अहंकार भाव के त्याग होइत छैक। अहंकार भावक कारणे लोक बजैत छैक कि ई हमर अछि, ई हम केलहुॅं, हमही एकर मालिक छी, हमर बात सुनू वा हमर बात मानू। एहि अहंकारवश मनोनुकूल फल प्राप्ति के नहि भेलासॅं दु:ख व अफसोस होइत छैक। मनोनुकूल फल प्राप्तिक इच्छा के चिंता होइत छैक। ओहि वस्तु के प्रति मोह उत्पन्न होइत छैक। मोहित वस्तु के प्राप्तिमे बाधा भेलासॅं क्रोध उतपन्न होइत छैक, क्रोधसॅं विवेक नाश होइत छैक व सर्वनाशक आरंभ भ' जाइत छैक।
               जॅं कर्मफलके मानसिक रुपसॅं त्यागि दैत छियैक यानी हम ई कहलहुॅं, ई हमर अछि ,एहि भावके त्यागि क' ईश्वर पर समर्पण करैत छी अर्थात सब किछु ईश्वर के कएल छनि वएह कर्त्ता छथि आ वएह कर्मफल के अधिकारी छथि त' प्रत्येक कर्म ईश्वर के समर्पित भ' जाइत छैक। जेना एहि श्लोक मे हमरालोकनि पढैत छी - " त्वदीयं अस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पितं। गृहाण सुमुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर।" 
       भक्तिक विधि भगवान अर्जुन के एहि श्लोकमे सिखबैत छथिन्ह कि भक्ति कोना कएल जाय जाहिसॅं ओ निष्काम कर्मयोग के श्रेणीमे आबि सकय।
" यज्जुहोषि, यदस्नासि,यत करोषि,ददासि यत, यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदार्पणम।"
जे कोनो शुद्धि, पूजा पाठ, यज्ञ करैत छी, जे कोनो काज करैत छी, जे किछु(दानमे) दैत छियैक, जे कोनो तप, व्रत करैत छी या सहैत छी ताहि सभके हमरा(ईश्वर के प्रति) समर्पण करु।
" Whatever you do,  whatever you pray, whatever you offer in sacrifice, whatever you give and whatever vow you keep, do everything as an offering to me"
अहंकार भावसॅं रहित भेला पर कर्मफलके प्रसाद रुपेण ग्रहण अथवा ईश्वरके धरोहर बुझि उपयोग उचित रुपेॅं कएल जा सकैत अछि। एहि तरहेॅं कर्म व कर्मफलके ईश्वरक प्रति समर्पित कऽ क' प्रसाद रुपेण उपयोगके निष्काम कर्मयोग कहल जाइत छैक।
ज्ञान योग :- 
                ईश्वर सर्व शक्तिमान सर्वेसर्वा, सर्वव्यापी, जीवन- मृत्युक सार, श्रृष्टिकर्त्ता, पालनहार, प्रकृति के सभ तत्वके संचालन कर्त्ता, संहारकर्त्ता छथि। ओ सर्व कार्य, कारण व कर्त्ता भावसॅं विमुक्त छथि। फलस्वरूप कर्मबन्धनसॅं बाधित नहि छथि। तेॅं कर्म व कर्मफलके ईश्वरक प्रति समर्पित कएलासॅं मनुक्ख कर्मबन्धनसॅं मुक्त भ' जाइत अछि। अर्जुनके द्वारा युद्धभूमिमे कएल सभ क्रियाके अपना प्रति समर्पित करबाक कृष्ण अर्जुनकेॅं सभ कर्मक फलसॅं यानी अनेको हत्याक पाप बोधसॅं मुक्त करैत छथिन्ह। कर्मबन्धनसॅं मुक्त मनुक्ख के आत्मा परमात्मासॅं योग करबा लेल तैयार भ' जाइत छैक। कर्मबन्धनसॅं मुक्त व्यक्तिक लेल कोनो कार्य (कर्म) के पुण्य व पापक भागी नहि होमय पड़ैत छैक। कारण ओकर सभ कार्य ईश्वर द्वारा अनुशासित व प्रेरित होइत छैक, जेना अर्जुनक लेल अपना सम्बन्धी, गुरुजन, मित्रगणके धर्मयुद्धमे हत्या भेनाई ओकरा पापक भागी नहि बनबैत छैक। तेॅं ओ ईश्वरके सभ  कर्म समर्पित कऽ क' कर्मबन्धनसॅं मुक्त भ' क' जहन युद्ध लड़ैत छैक, तॅं ई युद्ध धर्म युद्ध भ' जाइत छैक। निष्काम कर्म करय वलाके जीवनमे, जीवन यापनमे, समाजमे या न्यायमे अथवा कोनो कार्यमे पापक भागी नहि होमए परैत छैक।
                       जन्म मृत्युके चक्रसॅं ओ मोहित नहि होइत अछि। दु:खी नहि होइत छैक, आ समत्व भावके प्राप्त करैत छैक।
" सम दु:खे सुखे कृत्वा,लाभा लाभौ जया जयौ"
" दु:खे ष्वनुद्विग्न मन: प्रकृति: सुखेषु विगत: स्पृह:
वीतराग भय: क्रोध: स्थित धीर्मुनि रुच्यते"
निष्काम कर्मसॅं मनुष्य स्थिर बुद्धि के प्राप्त करैत अछि। स्थिर बुद्धि भेलासॅं  कृपा, ज्ञानयोग, भक्ति योग के रास्ता खुजैत छैक। भक्ति योग द्वारा ईश्वरसॅं एकात्मकताक प्राप्ति होइत छैक, व मरणोपरांत आत्मा के परमात्मा संग विलय होइत छैक यानी मोक्षक प्राप्ति होइत छैक। ज्ञान योगके उपदेश भगवान सूर्य देवताके सर्वप्रथम देलखिन्ह। ई उपदेश जखन लुप्तप्राय भेलैक, धर्मक पतन होमय लगलैक, अधर्मके उत्थान होमय लगलैक त' महाभारतक युद्धके आरंभमे ओ समय आबि गेलैक जाहि के लेल भगवान कहलखिन्ह - 
" यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
 अभ्युत्थानं अधर्मस्य तदात्मानं शृज्याम्यहम्
 परित्राणाय साधूनाम विनाशाय दुष्कृताम
 धर्म संस्थापनार्थम सम्भवामि युगे युगे। "
ई ज्ञात कि भगवान सर्वेसर्वा छथि, सर्वशक्तिमान छथि, सभ जीवक स्वामी छथि, सृष्टिकर्ता, पालनहार, संहारकर्ता  एवं प्रकृतिके संचालक छथि व कर्त्ताभाव सॅं विमुक्त छथि। फलस्वरूप कर्मबन्धनसॅं बाधित नहि छथि।तेॅं कर्म व कर्मफलके ईश्वरक प्रति समर्पित (बलिदान)क' देला मात्रसॅं मनुक्ख कर्मबन्धनसॅं मुक्त भ' जाइत छैक। ईश्वर त' पहिनेसॅं कर्मबन्धनसॅं मुक्त छैक।
            जखन कखनो धर्मक पतन होइत छैक आ अधर्मक वृद्धि भ' जाइत छैक त' व्यक्तिगत रुपसॅं एहि पृथ्वी पर समय समय पर अवतार ल' क' भक्तगण के रक्षा तथा दुष्कर्मीके, दुराचारीके निराकरण करैत छथिन्ह। धर्मक पुनः स्थापना करैत छथिन्ह। जकरा ईश्वरके एहि लीला, ईश्वरक गुण व शक्तिक ज्ञान छैक,  ओ व्यक्ति कर्म बंधनसॅं मुक्त भ' जाइत छैक।एहन ज्ञान सॅं योगी पुनर्जन्म के कष्टसॅं बाॅंचि जाइत अछि।आ ओ मोक्षके योग्य भ' जाइत अछि। ईश्वरक तत्वकेॅं जानऽ बला, जन्म- मृत्युके चक्रसॅं बन्धन मुक्त भ' क' रहयबला कहल जाइत छैक।इएह असली ज्ञान छैक । एकरा प्राप्तिक मार्ग पर चल' बलाके ज्ञान योगी कहल जाइत छैक।
               भक्ति योग के साधना :-
चारि तरहक लोकके ईश्वरक पूजा करबाक सौभाग्य भेटैत छैक :-
 1.पिड़ित , दु:खी ,आर्त  विपत्तिमे फॅंसल व्यक्ति 
 2.ज्ञान के अन्वेषक या साधक(ज्ञान के खोज
   करयबला व्यक्ति)
 3.आनन्दक खोज करयबला व्यक्ति
 4.आत्मज्ञानी व्यक्ति
एहि चारु तरहक पुजारीमे  आत्मज्ञानी व्यक्ति सर्वोत्तम कहाइत छैक, कारण ओकर भक्तिक उद्देश्य स्वयं भगवान छथिन्ह। वएह पूर्ण पवित्र भक्त होइत छैक जकर पूर्ण चेतना ईश्वर पर समर्पित रहैत छैक। ओकरा कृष्ण प्रिय छथिन्ह आ ओ कृष्ण के प्रिय अछि। जॅं अहाॅं अपन बुद्धि के ईश्वरमे केन्द्रित नहि क' सकैत छी त' जप , कीर्तन द्वारा ईश्वरके स्मरण करु सेहो पार नहि लगैत अछि त' अपन सभ कर्मके ईश्वरके समर्पित करु जॅं सेहो पार नहि लागय त' कर्मफलके ईश्वरके प्रति समर्पित करू।
              भक्ति योगमे ईश्वरके प्रसन्न करबा लेल विशेष आडम्बरक काज नहि, ओ कहैत छथिन्ह - 
 "पत्रं, षुष्पं, फलं, तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति
    तदहं भक्त्युप हृतमश्रामि प्रयतात्मन:।"
भक्तिक संग भगवानके मात्र फूल, पात, फल, जलसॅं प्रसन्न कएल जा सकैत अछि। भक्तिक उपस्थितिमे एहि मे सॅं कोनो वस्तु सॅं वा ओकरा अभावमे सेहो पूजा संभव छैक।
भक्ति भावक आवश्यकता पर जोर दैत भगवान कहैत छथिन्ह कि :-
        " मन्मना भव मदभक्तो, मद्याजी मां नमस्कुरु
          मामैवैश्यसि युक्त्वैव ममात्मानं मत्परायणम॥
यानी " सतत हमर बारेमे सोचू, हमर भक्त बनू, सतत हमर पूजा करु, हमर गुणगान करु। एहि तरहे हमरा शरणमे आबि कऽ अहाॅं हमरेमे बसि जायब।"
Always think of Me, be My devotee, always work to Me and pay obeisance to Me, Thus, taking refuse in Me, you will come to Me.I promise you this because you are dear to Me.
भक्तक रक्षाक लेल भगवान कहैत छथिन्ह -
       " अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जना:पर्युपासते
        तेषां नित्याभियुक्तानां योग क्षेमं वहाम्यहम्॥
I bear the responsibility of acquiring and protection of the necessities of my fully dependent devotee.
भक्तियोगमे लागल व्यक्तिके अपना आवश्यकता पूर्ति लेल निश्चिंत भ' जेबाक चाही कारण एकर पूर्ण भार भगवान अपना उपर ल' लैत छथिन्ह। समर्पित भक्तके सभ आवश्यकता पूर्ति भगवान करैत छथिन्ह।
भक्ति योगमे लागल मनुष्य के मरणोपरांत आत्माके परमात्मासॅं योग निश्चित छैक। अर्थात मुक्ति निश्चित छैक,  जन्म मृत्युक चक्रसॅं मुक्ति निश्चित छैक। सब तरहक दु:ख, भयसॅं निवारण भेनाई निश्चित छैक एवं संतोष व प्रसन्नताक प्राप्ति होइत छैक।
        एहि चारु तरहक भक्त पूजाक वास्ते इच्छुक गण के अलावे जिनकर मन भक्तिमे नहि लगैत छनि‌ तिनका लेल भगवान कृष्ण के उपदेश - 
If you are unable to firmly fix  your mind  in Me , try to attain Me by repeated praying of remembering Me. If you cannot do either, concentrate on offering all your actions to Me . You will attain perfection through actions performed for Me . And if you cannot then resolve to give up, for Me , the fruits  all your actions.
समोहं सर्वभूतेषु न मे द्वेषोस्ति न
ये भजन्तु तु मां भक्त्या, मयि ते तेषु चाप्यहम्।
मनुष्यक जीवनमे कर्मयोग, ज्ञान योग व भक्ति योगक महत्वक विषयमे भगवत गीतामे सत्य कहल छैक । वर्णित एहि तीनू योगक मानव जीवनमे उपयोगिता के ध्यानमे राखि क' कहल गेल छैक कि ई तीनू योग आलसीक लेल कर्मप्रेरक छैक, डरपोकक लेल साहसबर्द्धक, आ निराशक लेल आशावर्द्धक छैक, मृतप्राय के लेल जीवन दान छैक ।
                  -:इति :-
                                     राधा कान्त झा
                                     ग्राम + पोस्ट - चकौती
                                     थाना - नानपुर
                                     जिला - सीतामढ़ी
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Wednesday, February 15, 2023

Yog ke mahatva

 मनुक्खक जीवन मे yog ke उपयोगिताक के ध्यान मे रखैत कहल गेल छलैक कि आलसी क लेल  ई कर्मपेरक छैक, डरपोकक लेल  साहसवरधेक छैक , निराश क लेल ई आ आशावरधक छैक, मरणासनन क लेल नवजीवन छैक एवं सभ  कछेत्र मे सफल जीवन यापन कए लेल  मार्गदर्शक छैक। 



Sunday, December 15, 2019

Yoga of Selfless Action

Yoga of selfless Action
                   .    ( Nishkam Karm Yog)
Lord Krishna explains that no one can refrain from activity even for a moment. Inactive persons cannot maintain even their existence. One who externally restrains his hands, legs and other senses of action, is a fool. Know him to be hypocrite. He advises us to perform our prescribed duties, since to be active is better than idleness.
Superior is the person who has stabilized his senses by mind and engaged in the yoga of selfless action. Lord Krishna says that the Yoga of selfless action leads one to become my devotee, who is guaranteed all his necessities to be fulfilled by God.

Selfless duty performed as an Offering to the Supreme Lord is called Sacrifice or YAJNA. All action performed for any other purpose is the cause of bondage in the world of repeated births and death. 

Thursday, December 5, 2019

Bhagwad Gita in brief

Bhagwad Gita in brief.
         
It has been rightly said that Bhagavad Gita is activation for the lazy, courage for the fearful, hope for the hopeless and new life for the dying and a guide for leading a successful life in all fields. While the main purpose of Lord Krishna is to encourage and prepare Arjuna for his fight for the right against injustice, the  basic concepts of  life and death, body and soul, soul and supersoul,  knowledge, happiness and fulfillment, non attachment and peace, selfless action, fruitless action, avoidance of ego and anger, controlling senses and getting rid of delusion(Maya), wisdom and qualities of wise persons, renunciation and sacrifice, meditation and realization, God, His omnipresence and His power of dominance and excellence over everything animate and inanimate, creation, sustenance, destruction, Time and Death as God, merciful and miraculous uplifting of all, devotion and God's loving kindness of assuring fulfillment of devotees' all needs, faith and human nature, liberation from results of action,  cycle of birth, illness, old age and death have all been explained in His one to one conversation with Arjuna.  It is a must read by every one, irrespective of his faith, religion and belief.

Tuesday, November 12, 2019

Yada  yada hi dharmasy glaanirbhavati Bhaarat
Abhyutthaanam dharmasya tadatmaanam srijamyaham.
Paritraanay sadhoonaam vinashay cha dushkritam
Dharm samsthaapnaarthaay sambhawaami yuge yuge .