Monday, February 20, 2012

Aum Namah Sheetaleshwaray Namah : ॐ नमः शीतलेश्वराय नमः



ॐ शीतलेश्वराय नमः 











 ॐ शाम्बशिवाय नमः  




















































जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले


गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्


डमड्डमड्डमड्डम-न्निनादव-ड्डमर्वयं


चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १..




जटा-कटा-हसं-भ्रम भ्रमन्नि-लिम्प-निर्झरी-


-विलोलवी-चिवल्लरी-विराजमान-मूर्धनि .


धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ल्ललाट-पट्ट-पावके


किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २..






धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर


स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे .


कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि


क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३..




जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणि प्रभा


कदम्ब-कुङ्कुम-द्रव प्रलिप्त-दिग्व-धूमुखे


मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे


मनो विनोदमद्भुतं-बिभर्तु-भूतभर्तरि .. ४..




सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर


प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः


भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:


श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः ॥ ५..




ललाट-चत्वर-ज्वलद्धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-


निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्


सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं




कराल-भाल-पट्टिका-धगद्धगद्धग-ज्ज्वल

द्धनञ्ज-याहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके


धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक


-प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने m 
 तिर्मम … ७॥


नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्


कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः


निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः


कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥ ८..


प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा-


-वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .


स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं


गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९..


अखर्व सर्व-मङ्ग-लाकला-कदंबमञ्जरी


रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .


स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं


गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०..




जयत्व-दभ्र-विभ्र-म-भ्रमद्भुजङ्ग-मश्वस-


द्विनिर्गमत्क्रम-स्फुरत्कराल-भाल-हव्यवाट्


धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्ग-तुङ्ग-मङ्गल


ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः .. ११..




दृष-द्विचित्र-तल्पयोर्भुजङ्ग-मौक्ति-कस्रजोर्


-गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्वि-पक्षपक्षयोः .


तृष्णार-विन्द-चक्षुषोः प्रजा-मही-महेन्द्रयोः


समप्रवृतिकः कदा सदाशिवं भजे .. १२..




कदा निलिम्प-निर्झरीनिकुञ्ज-कोटरे वसन्


विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थ-मञ्जलिं वहन् .


विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाललग्नकः


शिवेति मंत्र-मुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३..




इदम् हि नित्य-मेव-मुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं


पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .


हरे गुरौ सुभक्ति-माशु याति नान्यथा गतिं


विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४..




पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं यः


शंभुपूजनपरं पठति प्रदोषे .


तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां


लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५..

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